जल निकास और उनके उद्देश्य

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जल निकास(DRAINAGE)

परिभाषा- अत्यधिक जल की उपस्थिति का पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फालतू पानी के खेत में एकत्रित होने से रत्नावकास में उपस्थित वायु का स्थान पानी से लेता है, जिसके कारण श्वसन में बाधा पड़ती है और पौधे सर भी सकते हैं। अतः अनावश्यक जत को खेत से बाहर निकालना आवश्यक होता है।

फसल की पैदावार बढ़ाने हेतु भूमि की सतह अथवा अधो-सतह से अतिरिक्त जल को कृत्रिम रूप से बाहर निकालना हो जल निकास कहलाता है.”

जल निकास की आवश्यकता (Necessity of drainage) जल निकास को आवश्यकत निम्नलिखित कारणों से होती है

(1) निचले स्थानों पर स्थित भूमियों में वर्षा ऋतु में पानी भर जाता है और फसलों की समय से बोआई

करने में बाधा पड़ती है।

(2) निचली भूमियों में खड़ी फसले अत्यधिक पानी के कारण नष्ट हो सकती है।

(3) जिन क्षेत्रों में जल स्तर ऊँचा पाया जाता है।

(4) अधोभूमि में कड़ी वह (hand pan) उपस्थित होने के कारण पानी नीचे को वहाँ में नहीं पहुंच पाता है तथा वह ऊपरी सतह पर एकत्रित होता है।

(5) जिन क्षेत्रों में निकली मिट्टी पायी जाती है, जो पानी कम मात्रा में सोखतो है फलस्वरूप पर्याप्त पानी भूमि को ऊपरी सतह पर एकत्रित हो जाता है।

(6) डेटा की भूमि जो नदियों के मुहाने पर होती है।

(7) लवणीय भूमि को सुधारने के लिए।

(6) तराई या पहाड़ियों के नीचे स्थित भूमि

(9) सिंचाई के तुरन्त बाद वर्षा होने पर अतिरिक्त पानी को निकालने की आवश्यकता होती है।

(10) नहरी क्षेत्रों में वहाँ में पानी की अपसरण (Seepage) द्वारा एकत्रित हो जाता है।

जल निकास के उद्देश्य OBJECTIVES OF DRAINAGE

जस-विकास के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है। इन सबसे उपन का बदला एक प्रमुख उद्देश्य है।

(1) भूमि की भौतिक दशा में सुधार करना (impr0ving the Physical Condition of the Soil) जब भूमि में जल का समय तक भरा रहता है एवं उसके निकास का उचित प्रयन्ध नहीं किया जाता है तो भूमि को भौतिक दशा कणों के मुद्रा विन्यास का उचित होना) बिगड़ जाती है, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाने के कारण उपज कम हो जाती है। भूमि को सुधारने हेतु विकास का उचित प्रबन्ध करना चाहिए जिससे पैदावार में वृद्धि की जा सके

(2) समुचित वायु संचार (Optimum aeration) भूमि की ऊपरी सतह पर पानी एक बना रहने केह में नहीं पहुंच पाती है। पानी भरने के कारावास में उपस्थित हवा भी भुतबुलों के रूप में बाहर निकल आती है. जिसमे वायुको कमी हो जाती है। फलस्वरूप का विकास रुक जाता है तथा जाती है। भोजन की प्राप्ति कम होने लगती है और पौधे मुरझाने लगते है। जल निकास का उचित प्रबन्ध कर देने से वायु का आवागमन होने लगता है।

(3) भूमि में दलदल त होने देना (Preventing the marshy condition of the soil) जिस क्षेत्र में जल निकालने का उचित प्रबन्ध नहीं किया जाता है तो भूमि दलदली हो जाती है, जिससे भूमि परिष्कार सम्बन्धी क्रियाएँ-जुताई- बोआई निकाई-गुड़ाई करना आदि समय पर सम्पन्न नहीं की जा सकती है तथा पौधों को उचित रूप से भोजन प्राप्त है के कारण पौधे पीले पड़ जाते हैं और अधिक नमी के कारण फफूंदी उत्पन्न हो जाती है, जिससे विभिन्न प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं। अतः यत निकालने का उचित प्रबन्ध करने से भूमि में नमी की कमी हो जाती है और भूमि दलदली होने से बच जाती है।

(4) उचित बनाये रखना (Maintaining the temperature)-खेत में काफी समय तक पानी भरा रहने के कारण सूर्य को अधिकांश गर्मी जल को वाष्ण रूप में बदलने में व्यय होती रहती है और ताप भूमि को प्राप्त नहीं हो पाता है तथा पौधों का अंकुरण तथा वृद्धि उचित रूप से नहीं हो पाती है। अत: उपन में वृद्धि लाने हेतु उचित जल निकास का प्रबन्ध करके भूमि के तापक्रम को उपयुक्त रखना आवश्यक है।

(5) हानिकारक लवणों का एकत्रण रोकना (Preventing the harmful salt)-निचली भूमि से हानिप्रद लवण पानी के साथ घुलकर जमीन को ऊपरी सतह पर आ जाते हैं, जो पानी के निकलने का उचित प्रबन्ध करने पर भूमि के बाहर निकाल दिये जाते हैं जिससे भूमि अम्लीय तथा क्षारीय होने से बच जाती है।

(6) उचित श्वसन क्रिया (Proper respiration) खेत में पानी भरे रहने से वायुको कमी हो जाती है। और पौधे की जड़े हैं। उस समय श्वसन क्रिया आवश्यक तत्व (ऑक्सीजन) की कमी के कारण बन्द हो जाती है, जिससे प्रचण्ड वायु की गति होने पर पौधे नष्ट हो जाते हैं। अत: श्वसन को क्रिया सम्पन्न करने के लिए तथा पौधों को नष्ट होने से बनाने के लिए उचित जल निकास का प्रबन्ध करना चाहिए।

(7) फसलों के लिए कृषि क्रियाएँ समय पर करना (Timely tillage)-अधिक समय तक खेत में जल एकत्रित रहने से भूमि में नमो अधिक हो जाती है। इन क्षेत्रों पर कृषि कियाएँ (जुलाई- बोआई) समय पर नहीं की जा सकती है, जिनके कारण पौधों की वृद्धि तथा फसलों को उपज पर कुप्रभाव पड़ता है। जल निकास का उचित प्रबन्ध होने से उपर्युक्त कृषि कार्य समय पर किये जाते हैं और उपज में वृद्धि की जा सकती है।

(8) लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता में वृद्धि करना (Increasing the activities ofadvantageous bacteria)-जब पानी भरा रहता है जो भूमि में उपस्थित जीवाणुओं को हवा मिलना बन्द हो जाती है, जिससे जीवाणु अपनी क्रिया बन्द कर देते हैं और नष्ट हो जाते हैं। फलत: कृषि उपज बढ़ना प्रश्नातीत हो जाता है। जल निकास द्वारा पानी बाहर निकाल दिये जाने से पौधों के इन मित्र जीवाणुओं को हवा प्राप्त होने लगती है और उनकी कार्य करने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है तथा कृषि उपज बढ़ जाती है।

(9) अयनाइट्रीकरण (डीनाइट्रीफिकेशन) को रोकना (To prevent the denitrification) –जलवाली भूमि में नत्रजन (NO) को तोड़कर नत्रजन को स्वतन्त्र कर देते हैं, जिसमें N का हासहोने लगता है, जिसको त निकास द्वारा रोका जा सकता है।

(10) हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट (Destroying bacteria)-जब खेत में भरा रहता है तो उसमें हानिकारक उत्पन्न हो जाते हैं, जो पौधों के भोजन को ग्रहण कर लेते हैं जिससे पौधे मुरझाने लगते हैं। अतः उपर्युक्त जाणुओं को नष्ट करने के लिए उचित तविकासका प्रबन्ध किया जाना आवश्यक है।

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