खरपतवार की परिभाषाएँ (DEFINITION OF WEEDS)
1 एक ऐसा पौधा है जो इतनी अधिक मात्रा में उगता है कि अधिक महत्वपूर्ण पोषक गुणों (बैकले 1920)वाले दूसरे पौधे की बढ़वार को रोक देता है”
2. “खरपतवार पौधों को ऐसी जातियों है, जो अवधि रूप में उगती है या जो उपयोगी नहीं है। ये प्राय: प्रचुरता से उगने वालो तथा दीर्घ स्थायी है और कृषि कार्यों में बाधा डालकर श्रम को लागत बढ़ाती है तथा उपन को कम करती है(राविन्स, 1952)
3. खरपतवार यह पौधा है, ये उचित स्थान पर उगता हो “A plant out of its place is called weed.”(वील )
4. खरपतवार यह पौधा है, जिसको क्षमता अच्छाई की अपेक्षा नुकसान को कहीं अधिक हो (पीटर) 5. खरपतवारों की आपस में कोई प्रजाति नहीं होती है बल्कि जहाँ उसे उगाने की जरूरत नहीं हो उगआये वह बेकार तथा नुकसान हो(चन्द्रिका ठाकुर)
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के आधार पर यही कहा जाता है कि खरपतवार से अवांछित पौधे हैं, जो बोये हौ खेतों अथवा अन्य स्थानों पर उगते, तेजी से बढ़ते तथा फूलते फलते हैं और फसलों की उपज को कम करते हैं। इनकी रोकथाम हेतु किसान को अधिक खर्च करना पड़ता है।
खरपतवारों का वर्गीकरण(CLASSIFICATION OF WEEDS)
खरपतवारों के वर्गीकरण में मुख्यतः उनके अंकुरण बढ्ने, पकने का समय, उनकी आयु, खरपतवारों के वृद्धि करने का ढंग उनको एवं मुदा सम्वन्धी आवश्यकता, उनकी भौतिक, दैहिकी व फसलों के साथ घनिष्ठता आदि कारकों को विशेष आधार माना जाता है।
(1) जीवन चक्र के आधार पर वर्गीकरण (Classification based on life cycle)
(क) एकवर्षीय खरपतवार (Annual weeds) – ये खरपतवार अंकुरण से लेकर पकने तक के जीवन चक्र को एक वर्ष में पूरा कर देते हैं। अधिकतर ये जनन बीजों द्वारा तैयार होते हैं।
मौसम के आधार पर पुनः इनका वर्गीकरण निम्नलिखित दो प्रकार से करते हैं
(i) वर्षा ऋतु (खरीफ) के खरपतवार (Kharif scason weeds)- ये खरपतवार वर्षा ऋतु के शुरू होने पर उगते हैं। एक वर्ष या इससे भी कम समय में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं। अधिकतर ये अपनी उत्पत्ति बीजों द्वारा करते हैं। कर्ता, पत्थरचटाव विसरा इसके उदाहरण है।
(ii) शरद ऋतु (रबी ) के खरपतवार (Rabi season weeds)- इन खरपतवारों का अंकुरण वर्षा समाप्त होने व शरद ऋतु के प्रारम्भ में होता है। इनके पौधे रखी फसलों के साथ-साथ अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं। कृष्ण नौल, खरवधुआ, बहुआ प्याजी व सत्यानाशी इसके उदाहरण है.
(ख) द्विवर्षीय खरपतवार (Biennial weeds)– इस श्रेणी के खरपतवार प्रथम वर्ष में अपनी वानस्पतिक वृद्धि करते हैं व दूसरे वर्ष में बीजोत्पादन कर अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं। इसका उदाहरण जंगली गाजर है।
(ग) बहुवर्षीय खरपतवार (Perennial weeds)- इस वर्ग के खरपतवार एक बार उगकर कई वर्षों तक फलते-फूलते रहते हैं। इनका विस्तार वानस्पतिक भागों जैसे-राइजोम ट्यूबर, नट, बल्ब आदि से होता है।उपयुक्त जलवायु में ये बीजोत्पादन भी करते है
इस वर्ग खरपतवारों का पुनः दो उपवर्गों में विभाजन किया जाता है
(i) काप्टिल खरपतवार (Shrubs)- इस वर्ग के खरपतवारों के तने सख्त (Woody) होते हैं। विशेष रूप में इनमें बहुवर्षीय पेड़ आते हैं। पहले कई वर्षों तक ये बीजों का उत्पादन न कर अपनी वानस्पतिक वृद्धि करते हैं। एक बार बीज पैदा करने निरन्तर प्रत्येक वर्ष पैदा करते रहते है। झरबेरी, कास, आक व लटजीरा इनके उदाहरण है।
(ii) शाकीय खरपतवार (Herbs)- इस वर्ग के खरपतवार प्रथम वर्ष में अपनी वानस्पतिक वृद्धि करते हैं व दूसरे वर्ष बीजों का उत्पादन प्रारम्भ करके, निरन्तर आने वाले वर्षों में बीजों का उत्पादन करते रहते हैं। इनके तने व शाखाएँ मुलायम होती हैं। मोया व हिरखुरी इस वर्ग के उदाहरण हैं।
(2) बीजपत्र के आधार पर वर्गीकरण (Classification based on cotyledons)
बीजपत्र के आधार पर खरपतवारों को दो प्रमुख वर्गों में विभक्त करते हैं
(क) एक बीजपत्री खरपतवार (Monocot weeds)-इन खरपतवारों के बीजों को तोड़ने पर बीज दो दालों में नहीं टूटता। इस वर्ग में ग्रैमिनी कुल के खरपतवार जैसे दूब, मोथा व जनखरा आदि आते हैं।
(ख) द्विबीजपत्री खरपतवार (Dicot weeds)- इस वर्ग के खरपतवारों के बीजों को ढोड़ने पर बीज दो दालों में बँट जाता है। इस वर्ग में बहुआ, कृष्ण नील, दूध, मुरेला (सँजी), मकोय व हिरनखुरो आदि आते हैं।
(3) खरपतवार का फसल सम्बन्ध के आधार पर वर्गीकरण (Classification of based on crop relationship)
इस वर्ग में किसी फसल के वे पौधे जो कृषक के बिना इच्छा के खेत में दूसरी फसल में उग आते हैं,खरपतवार को श्रेणी में गिने जाते हैं। इस वर्गीकरण के आधार पर खरपतवारों को पुनः निम्नलिखित उप-वर्गों में विभाजित करते हैं
(क) वास्तविक खरपतवार (Absolute weeds)- इस वर्ग के अन्दर उपर्युक्त सभी एकवर्षीय द्विवर्षीय खरपतवार सम्मिलित है। कृषक को सदैव इनसे हानि हो पहुंचती है। फसलोत्पादन में यह एक प्रमुख समस्या है।
(ख) सम्बन्धित खरपतवार (Relative weeds)- इस वर्ग में फसलों के ये पौधे, जिन्हें किसान खेत मेंनहीं बोटा तथा वे स्वयं ही उग जाते हैं, सम्बन्धित खरपतवार कहलाते हैं। जैसे-गेहूं के खेत में जौ, चना वसरसों आदि यदि उग आयें, तो ये सम्बन्धित खरपतवार कहलाते हैं। अशुद्ध बीज का बोना ही इस प्रकार की समस्या पैदा करता है।
(ग) रोगय (Rogue)–जब किसी फसल की अन्य जाति का पौधा बिना बोये खेत में उगता है तो वह रोगय कहलाती है। उदाहरण के रूप में यदि गेहूँ की एच. डी. 2260 की फसल में बिना बोये गेहूँ की यू. पी. 262 जाति का पौधा उग आये तो वह रोगय कहलायेगा। किसी जाति विशेष को अशुद्धता को बनाये रखने के लिए इस प्रकार के अनइच्छित पौधों को खेत से उखाड़ना (रोगिंग) आवश्यक होता है
(4) खरपतवारों की रोकथाम एवं उन्मूलन की सफलता को ध्यान में रखते हुए वर्गीकरण (Classifica tion based on control of weeds)
यह वर्गीकरण पौधों की विशेषताओं व जीवन-चक्र के आधार पर किया गया है
(क) चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (Broad leaved weeds)– जिन खरपतवारों को पत्तियाँ चौड़ी होती हैं, वे इसी वर्ग में आते हैं। जीवन चक्र के आधार पर इसके पुनः दो उपवर्ग बनाये गये हैं –
(i) एकवर्षीय-जैसे-बबुआ, मुरेला, मकोय, जंगलो चौलाई, पत्थरचटा, मुनमुना, चटरीमटरी, भंगड़ा, गजरी व जंगली जूट आदि।
(ii) बहुवर्षीय-जैसे-हिरनखुरो व वावुसुरो आदि।
(ख) सँकरी पत्ती वाले खरपतवार (Narrow leaved weeds)—इस वर्ग में घास कुल के पौधे आते हैं। जीवन चक्र के आधार पर इनको भी दो उप-वर्गों में विभक्त किया गया है
(I) एकवर्षीय-जैसे-मकड़ा आदि।
(ii) बहुवर्षीय-जैसे-जनखरा, दूव, काँस व सरपट आदि।
(ग) सेजिज (Sedges) – इस श्रेणी के एकवर्षीय एवं बहुवर्षीय खरपतवार अपनी वृद्धि नट, बल्य, ट्यूबर व राइजोम से करते हैं। साइप्रस स्पिसीज के खरपतवार मुख्यतः इसमें आते हैं।
खरपतवारों से हानियाँ (LOSEES CAUSED BY WEEDS OR HARMFUL EFFECTS OF WEED)
(1) मृदा जल को चूमते हैं।
(2) मुदा से पोषक तत्वों को चूसते हैं- मृदा में विभिन्न पोषक तत्व जो फसल के पौधों के लिए उपयोगी द्वारा7-20% तक ग्रहण कर लिए जाते हैं।
(3) फसलों की उपज को कम करते हैं- विभिन्न फसलों में खरपतवारों के द्वारा 5-50% तक पैदावार में कमी आ जाती है।
(4) फसलों के गुणों (Crop पर प्रभाव-विभिन्न फसलों के दानों से तेल एवं प्रोटीन की प्रतिशत मात्रा कम हो जाती है। गन्ने के पौधों में चीनी की प्रतिशतता कम हो जाती है, सब्जियों के गुणों पर भी कुप्रभाव पड़ता है। चारे की फसल के गुण भी नष्ट हो जाते हैं। सभी कारणों से फसल की कीमत गिर जाती है।
(5) फसल के रोग एवं कीटों को आश्रय-खरपतवार फसल के रोग एवं कीटों को आश्रय(Harbour) देते हैं। कुकुरबिट्स पर लगने वाले मेलन एफिड कोट, हिरनखुरी तथा विकवीड़ पर शरण लेती है। गाजर एवं सेलरी पर लगने वाली केरट रस्ट फ्लाई को जंगलो गाजर पर शरण मिलती है।
(6) कृषि यन्त्रों एवं मशीनों व पशुओं की आयु को कम करते हैं।
(7) भूमि की उत्पादकता में कमी-खरपतवार भूमि को उत्पादकता को कम करते हैं। कुछ खरपतवार मृदा में अपनी जड़ों द्वारा विषैले पदार्थ छोड़ते हैं, जो आगे बोई जाने वाली फसलों के लिए बहुत हानिकारक होते है। बैंक पास की जड़ों से निकले हुए पदार्थ अनेकों फसलों विशेष रूप से मटर व गेहूँ की फसलों के अंकुरण वृद्धि पर कुप्रभाव छोड़ते हैं। पोषक ठों को चूसकर उत्पादकता घटाते हैं।
(8) कृषक की आय पर प्रभाव-खरपतवार में बढ़ने पर उनके नष्ट करने में खर्च हुई अतिरिक्त धनराशि व फसल की पैदावार बढ़ाने अतिरिक्त खाद्य तत्व व सिंचाई में व्यय अधिक धनराशि, कृषक की आय को कम कर देती है।
(9) नहर एवं सिंचाई की नालियों में पानी का हास-खरपतवार नहरों एवं सिंचाई को नालियों में उगकर उनके बहने में रुकावट डालते हैं। साथ ही इनकी जड़ों के सहारे पानी रिसकर नष्ट होता रहता है। पानी का कुछ भाग स्वयं खरपतवार ग्रहण नष्ट करते हैं, इस प्रकार सिंचाई क्षमता घट जाती है।
(10) भूमि के मूल्य में कमी करते हैं।
(11) पशु उत्पादित पदार्थों पर कुप्रभाव-कुछ खरपतवारों जैसे- हुलहुल’ जब दूध वाले पशु द्वारा खाई जाती है, तो उसके दूध से एक विशेष प्रकार की अनइच्छित गन्ध आती है। इस प्रकार बिच्छू घास’ जब भेद् य की ऊन से चिपट जाता है तो उनके गुर्गों में कमी आ जाती है। धरा आदि अनजाने में पशु द्वारा खा लिया जाये तो पशु को मृत्यु हो सकती है।
(12) खरपतवार मनुष्यों के लिए हानिकारक- मनुष्यों की त्वचा में खुजली, चिचिदापन (Allergy) आदि रोग व किसी खरपतवार के ग्रहण करने पर मनुष्यों को मृत्यु भी हो सकती है।